- अखंड
ज्योति सितम्बर २००६ , पृष्ट-६४
युवाओ अपने को पहचानो
“ नौजवानों ! याद रखो
, जिस दिन तुम्हे अपने हाथ , पैर और दिल पर भरोसा हो जायेगा , उशी दिन तुम्हारी
अंतरात्मा कहेगी – बाधाओं को कुचलकर तू अकेला चल , अकेला ! सफलता का शीतल आँचल
तेरे माथे का पसीना पोछने के लिए दूर हवा में फहरा रहा है !
जिन व्यक्तियों
पर तुमने आशा के विशाल महल बना रखे है , वे कल्पना के व्योम में बिहार करने के
सामान अस्थिर , सारहीन , खोखले हैं! अपनी आशा को दूसरों में संश्लिष्ट कर देना
स्वयं अपनी मोलिकता का ह्रास कर अपने साहस को पंगु कर देना है ! जो व्यक्ति दूसरो की
सहायता पर जीवन यात्रा करता है , वह शीघ्र अकेला रह जाता है ! अकेला रह जाने पर
उसे अपनी मुर्खता का ज्ञान होता है !”
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अखण्ड ज्योति फरवरी १९५३, पृष्ठ – १४-१५