“किसी एक अंग में फोड़ा हो तो उसे थोडा सा चीरकर
मवाद निकला जा सकता है , पर जब पूरा शरीर मवाद से भर गया हो तो सम्पूर्ण कायाकल्प
के अचूक विधान तलाशने पड़ेंगे ! देश की जो दशा आज है , उससे छोटी – मोती क्रांतियो
से काम चलने वाला नहीं है ! इसके लिए तो संपूर्ण क्रांति की संजीवनी चाहिए ! यह
महा साहस तो देश की युवा पीढ़ी ही कर सकती है ! युवा पीढ़ी से हमें बहुत आशा है !
इन्हें लेकर हमने अनेक सपने बुने है ! बड़े गर्व और विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि
राष्ट्र की युवा चेतना यदि चेत गई तो भारत माता यशस्विनी बनेगी ! जब हम युवा पीढ़ी की सामर्थ्य
पर यकीन करते हुए भविष्य को निहारते है , हमारे मुख पर ख़ुशी छा जाती है ! भारत का
भविष्य उज्जवल है , परन्तु वर्तमान की दुरावस्था हमें दारुण दुःख देती है !”
- अखंड
ज्योति सितम्बर २००६ , पृष्ट-६४
युवाओ अपने को पहचानो
“ नौजवानों ! याद रखो
, जिस दिन तुम्हे अपने हाथ , पैर और दिल पर भरोसा हो जायेगा , उशी दिन तुम्हारी
अंतरात्मा कहेगी – बाधाओं को कुचलकर तू अकेला चल , अकेला ! सफलता का शीतल आँचल
तेरे माथे का पसीना पोछने के लिए दूर हवा में फहरा रहा है !
जिन व्यक्तियों
पर तुमने आशा के विशाल महल बना रखे है , वे कल्पना के व्योम में बिहार करने के
सामान अस्थिर , सारहीन , खोखले हैं! अपनी आशा को दूसरों में संश्लिष्ट कर देना
स्वयं अपनी मोलिकता का ह्रास कर अपने साहस को पंगु कर देना है ! जो व्यक्ति दूसरो की
सहायता पर जीवन यात्रा करता है , वह शीघ्र अकेला रह जाता है ! अकेला रह जाने पर
उसे अपनी मुर्खता का ज्ञान होता है !”
-
अखण्ड ज्योति फरवरी १९५३, पृष्ठ – १४-१५