संस्कृत प्रथम सत्र- पाठ्यक्रम
विषयानुक्रमणिका -
1. संज्ञा प्रकरणम् :-माहेश्वरसूत्राणि ,वर्णों का उच्चारण स्थान, यत्न विचार ! Click to view
2. सन्धि प्रकरणम्: अच् सन्धि ,हल् (व्यंजन) सन्धिः,
3. शब्दरूप सिद्धिः - सूत्र, शब्दरूप सिद्धि प्रक्रिया
4. शब्दरूप प्रकरणम्
5. लट् लकार, लृट् लकार, लोट् लकार, विधिलिंग्
v माहेश्वरसूत्राणि
-
पाणिनी रचित अष्टाध्यायी
(माहेश्वराणि) सूत्राणि -
1. अइउण् 2. ऋलृक् 3. एओङ् 4. ऐऔच् 5. हयवरट् 6. लण् 7. ´मङणनम् 8. झभय´् 9. घढ़धष् 10. जबगड़दश् 11. खफछठथचटतव् 12. कपय् 13. शषसर् 14. हल्।
v प्रत्याहार
सूत्राणि -
प्रत्याहार
सूत्र में दो वर्ण होते हैं। पहला पूर्ण होता है तथा दूसरा हल् होता है जैसे - अच्, हल्, जश्, ,खर्, झष्, अल् इत्यादि।
इसको बनाने के लिये - कोई
भी माहेश्वर सूत्र के पूर्ण वर्ण से लेकर कोई भी हलन्त वर्ण तक लेकर इसको बनाया जा
सकता है। जिसमें वे सूत्र प्रथम उस पूर्ण वर्ण से लेकर अन्तिम हल् वर्ण के पहले तक
के सभी पूर्ण को निरूपित करता हैं। जैसे-
अच्
- अ, इ, उ, ऋ, लृ, ए, ओ, ऐ, औ।
जश्
- ज, ब, ग, ड़, द।
झष्
- झ, भ, घ, ढ़, ध।
चर्
- च, ट, त, व, क, प, श, ष, स।
खर्
- ख, फ, छ, ठ, थ, च, ट, त, क, प, श, ष, स। आदि।
इसी प्रकार और भी प्रत्याहार सूत्र बनाये जा सकते
हैं।
1. हलन्त्यम् - (हल् $ अन्त्यम्) अर्थात् उपदेश की
अवस्था के अन्तिम हल् (व्यंजन) की इत् संज्ञा होती है।
जैसे - अइउण्, ऋलृक्, चर्, हल्, खर्, अच्, सुप्, इत्यादि। इनमें ण्, क्, र्, ल्, र्, च् और प् हलन्त्य वर्ण होने
से इत्संज्ञक होंगे।
2. तस्य
लोपः - अर्थात्
जिसकी इत्संज्ञा होती है उसका लोप हो जाता है। जैसे- अइउण् में ण् इत्संज्ञक होने
से इसका लोप हो जाएगा।
3. अदर्शनं
लोपः - अर्थात् विद्यमान शब्द किन्तु न दिखाई दे न सुनाई दे वह लोप
कहलाता है। और अदर्शन का लोप होता है।
4. आदिरन्त्येन
संहेताः - (आदिः अन्त्येन संहेताः) अर्थात् अन्तिम इत्संज्ञक वर्ण के साथ
उच्चारित होने वाला आदि वर्ण अपना तथा बीच में आने वाले अन्य वर्णों का बोध कराता
है।
जैसे - अच् - अ, इ, उ, ऋ, लृ, ए, ओ, ऐ, औ।
5. उपदेशेऽजनुनासिक
इत् - अर्थात् उपदेश की अवस्था में जो अनुनासिक है उसकी इत्संज्ञा होती
है। जैसे - ण्, ङ्, ´् आदि।
6. ऊकालोझ्रस्वदीर्घप्लुतः -
अर्थात् उ, ऊ और ऊ३
काल वाले स्वरों की क्रमशः ह्रस्व, दीर्घ और प्लुत संज्ञा होती हैं। अथवा एकमात्रिक स्वर ह्रस्व, द्विमात्रिक स्वर दीर्घ और
त्रिमात्रिक स्वर प्लुत कहलाता है।
जैसे - अ, इ, उ - (ह्रस्व)
आ, ई, ऊ - (दीर्घ)
आ३, ई३, ऊ३ - (प्लुत)
7. उच्चैरुदा त्तः - अर्थात्
जिस स्वर का उच्चारण अपने निर्धारित स्थान से ऊपर वाले भाग से होता है वह उदात्त
कहलाता है।
8. नीचैरनुदात्तः -
अर्थात् अपने निर्धारित स्थान से नीचे वाले भाग से उच्चारण होने वाले स्वर अनुदाŸा कहलाते हैं।
9. समाहारः
स्वरितः - जिस स्वर का उच्चारण उदात्त और अनुदात्त के एकीकरण से हो वह
स्वरित कहलाता है।
10. मुखनासिकावचनोऽनुनासिकः -
अर्थात् जिस वर्ण का उच्चारण मुख और नासिका दोनों से ही होता है, वह अनुनासिक कहलाता है। और
जिस वर्ण का उच्चारण केवल मुख से होता है वह अननुनासिक कहलाता है।
वर्णों का उच्चारण स्थान
11. तुल्यास्य प्रयत्नं सवर्णम् -
(तुल्य+आस्य(मुख
आदि)+ प्रयत्नम्+ सवर्णम्) अर्थात् जिन
वर्णों के कण्ठ मुख आदि स्थान और अभ्यान्तर यत्न दोनों ही समान होते हैं, वे परस्पर एक- दूसरे के
सवर्ण कहलाते हैं।
12. अकूहविसर्जनीयानां कण्ठः -
अर्थात् अ, कवर्ग (क, ख, ग, घ, ङ), ह और विसर्ग (:) का उच्चारण
स्थान कण्ठ है।
13. इचुयशानां तालु - अर्थात् इ, चवर्ग (च, छ, ज, झ, ´), य और श
का उच्चारण स्थान तालु है।
14. ऋटुरषाणां मूर्धा - अर्थात् ऋ, टवर्ग (ट, ठ, ड, ढ, ण), र और ष का उच्चारण स्थान
मूर्धा है।
15. लृतुलसानां दन्ताः - लृ, तवर्ग (त, थ, द, ध, न) स और ल का उच्चारण स्थान
दांत हैं।
16. उपूपध्मानीयानां ओष्ठौ - उ, पवर्ग (प, फ, ब, भ, म), का उच्चारण स्थान ओष्ठ हैं।
17. ´मङणनानां नासिका च - ´, म, ङ, ण, न का उच्चारण स्थान नाक भी
है
18. एदैतोः कण्ठ तालुः - ए, और ऐ दोनों का उच्चारण
स्थान कण्ठ और तालु है।
19. ओदौतोः कण्ठोष्ठम् - ओ और
औ का उच्चारण स्थान कण्ठ और औष्ठ है।
20. वकारस्य दन्तोष्ठम् - व का उच्चारण स्थान दांत
और ओष्ठ है।
21. जिह्वामूलीयस्य जिह्वामूलम् -
जिह्वामूलीय का उच्चारण स्थान जीभ का मूलभाग है।
22. नासिकाऽनुस्वारस्य -
अनुस्वारों ( ं ) का उच्चारण स्थान नाक भी है।
यत्न
विचार -
23. यत्नो द्विधा - यत्न
दो प्रकार के होते हैं- ‘‘अभ्यान्तरो
बाह्यश्च’’ -
1.अभ्यांतर(आंतरिक) 2.बाह्य ।
आद्याः पंचधा - आद्याः (पहला,) अभ्यान्तर पाँच प्रकार का
होता है-
स्पृष्टेषत्स्पृष्टेषद्विवृतविवृतसंवृतभेदात्
-
अर्थात् स्पृष्ट्, ईषत्स्पृष्ट्, ईषत् विवृत, विवृत, संवृत।
§ स्पर्श-
(कुचुटुतुपु) वर्ग की स्पृष्ट संज्ञा होती है
कुचुटुतुपु - कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग और पवर्ग।
§ ईषत्स्पृष्ट-
अन्तःस्थों (य, व, र, ल ) की संज्ञा होती है।
§ ईषद्विवृत- ऊष्मकों
(श,ष,स,,ह) की संज्ञा होती है।
§ विवृत- जितने
स्वर हैं उनकी विवृत संज्ञा होती है। जैसे- अ, इ, उ, ऋ, लृ आदि।
§ संवृत - लिखने
की अवस्था में ‘अ’ की संवृत संज्ञा होती है।
2. बाह्यप्रयत्न एकादशधा -
विवारः, संवारः, श्वासः, नाद, घोष, अघोष, अल्पप्राण, महाप्राण, उदात्त, अनुदात्त, स्वरित।
24. हशः संवारानादघोषाश्च - हश्
प्रत्याहार के अन्तर्गत संवार,
नाद और घोष आते हैं।
25. खरः विवाराः श्वासा अघोषश्च - खर्
प्रत्याहार के अन्तर्गत विवार,
श्वास और अघोष आते हैं।
26. वर्गाणां प्रथमतृतीयपंचमयणश्चाल्पप्राणाः -
वर्गों के प्रथम, तृतीय
तथा पंचम और यण् प्रत्याहार (य,
व, र, ल) अल्पप्राण कहलाते हैं।
27. वर्गाणां द्वितीयचतुर्थाैशलश्च महाप्राणाः - वर्ग
का दूसरा, चैथा और
शल् प्रत्याहार (श, ष, स, ह) महाप्राण कहलाते हैं।
28. अनुदित् सवर्णस्य चाऽप्रत्ययः -
अविधियमान अण् प्रत्याहार (अ, इ, उ, ऋ, लृ, ए, ओ, ऐ, औ, ह, य, व, र, ल) और उदित प्रत्याहार
(कुचुटुतुपु) वर्ग अपने तथा अपने सवर्ण स्वरूप की संज्ञा होती है।
29. परः सन्निकर्षः संहिता -
वर्णों की अत्यन्त समीपता को संहिता कहते हैं। जैसे- राम +कुमारः - रामकुमार। अन् + अनुनासिक- अननुनासिक।
30. हलोऽनन्तरा संयोगः - दो हलों के बीच में किसी
अच् का व्यवधान न हो उसकी संयोग संज्ञा होती है। जैसे - प्र,श्र, द्य, उन्नति आदि।
31. सुप्तिङ्न्तं पदम् - सुबन्त और तिङ्न्त की
पदम् (पद) संज्ञा होती है। जिसके अन्त में सुप् प्रत्यय हो वह सुबन्त और जिसके
अन्त में तिङ् प्रत्यय हो उसे तिङ्न्त कहते हैं।
सुप् + अन्त - सुबन्त
तिङ् + अन्त - तिङ्न्त
यहां संज्ञा प्रकरण और संबंधित विषयों पर 20 प्रश्न और उनके उत्तर दिए गए हैं:
1. संज्ञा प्रकरणम् क्या है?
उत्तर: संज्ञा प्रकरणम् संस्कृत व्याकरण का वह भाग है जिसमें शब्दों की परिभाषा, उनके प्रकार और उपयोग पर चर्चा की जाती है।
2. माहेश्वरसूत्र क्या हैं?
उत्तर: माहेश्वरसूत्र पाणिनी द्वारा रचित अष्टाध्यायी में दिए गए 14 सूत्र होते हैं, जिनका उद्देश्य व्याकरण की संज्ञाओं का निर्धारण करना है।
3. "अइउण्" का क्या अर्थ है?
उत्तर: "अइउण्" माहेश्वरसूत्र का एक उदाहरण है, जिसमें 'अ', 'इ', 'उ' आदि वर्णों का समावेश होता है, और ण् यह हलन्त्य वर्ण का संकेत करता है।
4. प्रत्याहार सूत्र क्या होते हैं?
उत्तर: प्रत्याहार सूत्र वह सूत्र होते हैं जो एक विशेष वर्ण से लेकर एक हल् वर्ण तक के सभी वर्णों को निरूपित करते हैं। जैसे "अच्", "जश्", "खर्" आदि।
5. "अच्" प्रत्याहार सूत्र किसे निरूपित करता है?
उत्तर: "अच्" प्रत्याहार सूत्र अ, इ, उ, ऋ, लृ, ए, ओ, ऐ, औ इन सभी स्वर वर्णों को निरूपित करता है।
6. हलन्त्यम् का क्या अर्थ है?
उत्तर: हलन्त्यम् का अर्थ है 'हल्' (व्यंजन) का अन्तिम होना, जैसे 'अइउण्', 'ऋलृक्' आदि।
7. तस्य लोपः का क्या मतलब है?
उत्तर: तस्य लोपः का अर्थ है, जिस शब्द का हलन्त्य वर्ण इत्संज्ञक होता है, उसका लोप हो जाता है।
8. अदर्शनं लोपः क्या है?
उत्तर: अदर्शनं लोपः वह स्थिति है जब कोई शब्द सुनाई तो देता है, लेकिन दृष्टि से गायब रहता है।
9. आदिरन्त्येन संहेताः का क्या अर्थ है?
उत्तर: आदिरन्त्येन संहेताः का अर्थ है, अन्तिम इत्संज्ञक वर्ण के साथ उच्चारित होने वाला आदि वर्ण अपने साथ आने वाले सभी वर्णों का बोध कराता है।
10. उपदेशेऽजनुनासिक इत् का क्या मतलब है?
उत्तर: उपदेशेऽजनुनासिक इत् का मतलब है कि उपदेश की अवस्था में जो वर्ण अनुनासिक होते हैं, उनका इत्संज्ञा होती है, जैसे ण्, ङ् आदि।
11. ऊकालोझ्रस्वदीर्घप्लुतः का क्या अर्थ है?
उत्तर: इस सूत्र का मतलब है कि 'उ', 'ऊ' और 'ऊ३' काल वाले स्वरों की क्रमशः ह्रस्व, दीर्घ और प्लुत संज्ञा होती है।
12. उच्चैरुदात्तः का क्या अर्थ है?
उत्तर: उच्चैरुदात्तः का मतलब है, वह स्वर जो अपने निर्धारित स्थान से ऊपर की ओर उच्चारित होता है, उसे उदात्त कहा जाता है।
13. नीचैरनुदात्तः का क्या मतलब है?
उत्तर: नीचैरनुदात्तः का अर्थ है, वह स्वर जो अपने निर्धारित स्थान से नीचे की ओर उच्चारित होता है, उसे अनुदात्त कहा जाता है।
14. समाहारः स्वरितः क्या है?
उत्तर: समाहारः स्वरितः वह स्वर है जिसका उच्चारण उदात्त और अनुदात्त के एकीकरण से होता है।
15. मुखनासिकावचनोऽनुनासिकः क्या है?
उत्तर: मुखनासिकावचनोऽनुनासिकः वह वर्ण होता है जिसका उच्चारण मुख और नासिका दोनों से होता है, जैसे 'ण्'।
16. माहेश्वरसूत्रों का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर: माहेश्वरसूत्रों का मुख्य उद्देश्य व्याकरण के नियमों को संक्षेप में और सरलता से व्यक्त करना है।
17. "झष्" प्रत्याहार सूत्र किसे निरूपित करता है?
उत्तर: "झष्" प्रत्याहार सूत्र झ, भ, घ, ढ़, ध इन वर्णों को निरूपित करता है।
18. "खर्" प्रत्याहार सूत्र में कौन-कौन से वर्ण आते हैं?
उत्तर: "खर्" प्रत्याहार सूत्र में ख, फ, छ, ठ, थ, च, ट, त, क, प, श, ष, स वर्ण आते हैं।
19. हलन्त्य वर्णों का उदाहरण क्या है?
उत्तर: हलन्त्य वर्णों का उदाहरण हैं ण्, क्, र्, ल्, च्, प् आदि।
20. "अइउण्" के लोप से क्या परिणाम होता है?
उत्तर: "अइउण्" के लोप से 'ण्' का लोप हो जाता है, जिससे हलन्त्य वर्ण का लोप होता है।
यह प्रश्न और उत्तर संज्ञा प्रकरण के विभिन्न पहलुओं को कवर करते हैं और माहेश्वर सूत्रों, प्रत्याहार सूत्रों और हलन्त्य वर्णों के बारे में विस्तार से बताते हैं।
!! इति संज्ञाप्रकरणम् !!
Please sandhi k bare me jankari de
ReplyDeleteThanks for comment!💐
ReplyDeletePlease follow the link for
सन्धि प्रकरणम्: above or search below link
https://omvishwajit.blogspot.com/2015/04/swar-sandhi.html
👍☺