आचार्य चाणक्य के 10 महत्वूर्ण नीति श्लोक एवं अर्थ

आचार्य चाणक्य कौन ?

परिचय : आचार्य चाणक्य भारतीय इतिहास में महान राजनीतिज्ञ और विचारशील थे। वे एक प्रमुख गुप्त सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के गुरु और राजनीतिक सलाहकार थे। चाणक्य नीति (Chanakya Neeti) में उनके महत्वपूर्ण विचारों का संग्रह है जो आज भी मानवता के लिए महत्वपूर्ण हैं। 


यहां आपको आचार्य चाणक्य के 10 महत्वपूर्ण नीति श्लोक, उनका अनुवाद और संदर्भ सहित दिया जा रहा है:


1. अस्माकं देशः परदेशोऽपि नास्ति अपत्रभूतः अस्मिन् जीवने।

अर्थ: हमारा देश और वतन हमारे जीवन में कोई अपवित्रता नहीं होती है, चाहे वह हमारा देश हो या परदेश।

संदर्भ: यह श्लोक चाणक्य नीति के द्वारा दिया गया है। इसका अर्थ है कि हमें अपने देश और वतन के प्रति सदैव सम्मान और वफादारी रखनी चाहिए। (संदर्भ: चाणक्य नीति, अध्याय 7, श्लोक 5)


2. यथा राजा तथा प्रजा।

अर्थ: जैसा राजा, वैसी ही जनता।

संदर्भ: चाणक्य इस श्लोक के माध्यम से सुझाव देते है कि राजा और जनता एक-दूसरे के परस्पर अलग नहीं होते हैं और यदि राजा ईमानदार और जनता जिम्मेदार होती है, तो देश शान्ति और समृद्धि का आनंद उठाता है। (संदर्भ: चाणक्य नीति, अध्याय 1, श्लोक 10)


3. जले न तृप्येत् तप्तानां वृक्षो न तृप्यति बाष्पितः।

अर्थ: जलते हुए व्यक्ति को संतोष नहीं मिलता है, वृक्ष को बारिश से संतोष नहीं मिलता है, बल्कि केवल वाष्प से ही मिलता है।

संदर्भ: यह श्लोक चाणक्य की बुद्धिमत्ता और समझ को दर्शाता है, जिसमें उन्होंने बताया है कि तपस्या करने वाले व्यक्ति को संतोष नहीं मिलता है, बल्कि केवल अपने कर्मों के द्वारा समृद्धि मिलती है। (संदर्भ: चाणक्य नीति, अध्याय 10, श्लोक 7)


4. प्राणिनां अर्थे कुचेष्टा च शुद्धिः परमा उत्तमा।

अर्थ: प्राणियों के लिए केवल उनकी उच्चतम और श्रेष्ठतम शुद्धि ही कारगर होती है।

संदर्भ: चाणक्य नीति में इस श्लोक के माध्यम से बताया गया है कि एक व्यक्ति के लिए सच्ची प्रगति और सफलता का मार्ग उसकी आचरण और नैतिकता में ही होता है। (संदर्भ: चाणक्य नीति, अध्याय 14, श्लोक 4)


5. न स्वर्णलेपः सतीयस्य पार्थिवस्यैव राजति।

अर्थ: सत्य का संक्षेप वाक्यों में बहुत होता है, जिससे एक शासक की प्रशंसा होती है, और न कि सोने के लेप के द्वारा।

संदर्भ: यह श्लोक चाणक्य की बुद्धिमत्ता और अर्थपूर्ण वाणी की महत्त्वपूर्णता को दर्शाता है, जिसे वे एक शासक के सम्मान में व्यक्त करने के लिए उपयोग करते हैं। (संदर्भ: चाणक्य नीति, अध्याय 14, श्लोक 15)


6. कार्यं निश्चयं परित्याग्य कार्यं विद्यान्ते मत्सराः।

अर्थ: जिन्होंने निश्चयपूर्वक किया हुआ कार्य त्याग दिया है, वे ईर्ष्या करने वाले हैं।

संदर्भ: चाणक्य इस श्लोक के माध्यम से यह बताते हैं कि कर्मचारी या शासक को समय-समय पर अपने कार्य के पीछे दृढ़ता से खड़ा होना चाहिए और किसी भी प्रकार की ईर्ष्या को त्याग देना चाहिए। (संदर्भ: चाणक्य नीति, अध्याय 9, श्लोक 2)


7. आपद्-अमित्राणां विद्यात् अमित्राणां अपादनं।

अर्थ: समय बदलने पर दोस्त शत्रु बन जाते हैं और शत्रु समय बदलने पर दोस्त बन जाते हैं।

संदर्भ: इस श्लोक के माध्यम से चाणक्य दर्शाते हैं कि समय बदलने के साथ ही मित्र और शत्रु की पहचान बदल जाती है, और इसलिए हमें सतर्क रहना चाहिए। (संदर्भ: चाणक्य नीति, अध्याय 10, श्लोक 8)


8. सत्येन लभ्यस्तपसा च तथैव धनेन च।

अर्थ: सत्य और तपस्या से प्राप्त होने वाला सबसे महत्त्वपूर्ण है, और वैसे ही धन से प्राप्त होने वाला भी।

संदर्भ: चाणक्य नीति में इस श्लोक के माध्यम से यह बताया जाता है कि सत्य और तपस्या एक व्यक्ति की श्रेष्ठता के माध्यम होते हैं, जो उसे संघर्ष और सफलता में मदद करते हैं। (संदर्भ: चाणक्य नीति, अध्याय 15, श्लोक 6)


9. पूर्वं प्रवृत्तं नानुशोचितव्यं प्रवृत्तं चानुशोचितव्यम्।

अर्थ:  पहले हुए कार्य का अविचारनीय होना चाहिए और हो चुके कार्य का चिंतनीय होना चाहिए।

संदर्भ: चाणक्य नीति में इस श्लोक के माध्यम से बताया गया है कि हमें पहले हुए कार्यों के परिणामों के बारे में सोचने से पहले विचार करना चाहिए और जो कार्य हो चुके हों, उनके परिणामों को चिंतन करना चाहिए। (संदर्भ: चाणक्य नीति, अध्याय 4, श्लोक 15)


10. यथा वर्तते जगत्येवं राज्ञः कर्म नियच्छति।

अर्थ: जैसे दुनिया चलती है, उसी प्रकार राजा का कर्म नियमित होता है।

संदर्भ: यह श्लोक चाणक्य नीति के माध्यम से बताता है कि जैसे दुनिया नियमित रूप से अपने कार्यों को संचालित करती है, उसी तरह एक शासक को भी अपने कर्मों का नियमितता से पालन करना चाहिए। (संदर्भ: चाणक्य नीति, अध्याय 1, श्लोक 6)


ये थे आचार्य चाणक्य के 10 महत्वपूर्ण नीति श्लोक, उनके अनुवाद, अर्थ और संदर्भ। इन नीति श्लोकों में चाणक्य ने मानवीय जीवन के मूल्यों, नैतिकता और शास्त्रीय तत्वों के महत्व को संक्षेप में प्रकट किया है। ये नीति श्लोक हमें एक योग्य और सफल जीवन के लिए मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।

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