हठ योग प्रदीपिका
Ø हठयोग की परिभाषा (Hatha Yoga definitions)
Ø अभ्यास हेतु उपयुक्त स्थान
Ø ऋतु –
काल
Ø योगाभ्यास के लिए पथ्यापथ्य
Ø साधना में साधक – बाधक तत्त्व
Ø हठ सिद्धि के लक्षण
Ø हठयोग की उपादेयता
Ø ह.यो.प्र. में वर्णित आसनों की विधि व लाभ
Ø प्राणायाम की परिभाषा
Ø प्रकार , विधि व लाभ
Ø प्राणायाम की उपयोगिता
प्रस्तावना (Introduction)–
“हठयोग”
शब्द दो शब्दों “हठ” एवं “योग” से मिलकर बना है , जिससे यह एक प्रकार की योग पद्धति होना सूचित करता है ! योग विद्या
भारतीय आर्ष विद्यायों में से एक महत्वपूर्ण एवं सर्वोपयोगी विशुद्ध विज्ञान है !
जिसे
वैदिक भारतीय ऋषियों ने सर्वजन के त्रिविध दुखो की निवृति एवं सुख – शांति, समृद्धि पूर्ण जीवन के साथ – साथ परम पुरुषार्थ (परम लक्ष्य
) मोक्ष की प्राप्ति हेतु व्यावहारिक साधनात्मक (सूत्र) सिद्धांतो का
प्रतिपादन किये ! जिसको कोई भी मनुष्य जीवन में धारण कर सभी प्रकार के कलेशो से
मुक्त हो सुख – शांति पूर्ण जीवन व जीवन लक्ष्य को सहजता से प्राप्त कर अपने सुर
दुर्लभ मनुष्य जीवन को धन्य बना सकता है !
जीवन
साधना के इस गूढ़ एवं व्यावहारिक योग विज्ञान के जन सामान्य के स्थिति योग्यता एवं
स्तर के भिन्नतानुसार कई प्रकार है जिनमे सभी का परम उद्देश्य सामान ही है – समस्त
दुखों की आत्यान्त्तिक निवृत्ति एवं
मोक्ष(समाधि) की प्राप्ति ! जैसे – हठ योग , ज्ञान योग, कर्म योग, भक्ति योग , राज
योग , अष्टांग योग , मंत्र योग , तंत्र योग ,कुंडलिनी योग आदि ! ये सभी योग के
विभिन्न प्रकार है !जिसमे हठ योग शारीरिक- मानसिक शुद्धि(शोद्धनम ),दृढ़ता
,स्थिरता, धीरता, लाघवता(हल्कापन ) से क्रमशः आत्म प्रत्यक्षिकरण और निर्लिप्तता १/१०
घे.स.. को अपेक्षाकृत अधिक सुगमता से प्राप्त करते हुए राज योग की अवस्था को
प्राप्त कर योग सिद्ध होता ! इस प्रकार हठ योग – राजयोग के प्रारंभिक किन्तु
आवश्यक व प्रभावशाली अभ्यास है जो योग सिद्धि में परम सहायक है ! यथा- केवलं
राजयोगाय हठविद्योपदिश्यते ! ह.प्र-१/२ !
हठ योग का अर्थ एवं
परिभाषा –
जैसा
की नाम एवं नामी का गहरा सम्बन्ध होता है ! अर्थात वस्तु अथवा विषय , साधन आदि का
उसके नाम से गहरा सम्बन्ध सुनिश्चित होता है ! उस दृष्टि से हठ योग शब्द देवनागरी
लिपि के वर्णमाला से निर्मित हुआ है
तथा देवनागरी लिपि के प्रत्येक अक्षर का
आपना एक विशेष अर्थ होता है !
इस
अनुसार ‘हठ’ शब्द दो अक्षर ‘ह’ और ‘ठ’ से मिलकर बना है ! जिसमे ह, और ठ का अर्थ है -
ü ह
= सूर्य स्वर, उष्णता का प्रतीक , पिंगला नाडी , दायाँ नासिका !
ü ठ
= चन्द्र स्वर, शीतलता का प्रतीक , इडा नाडी , बायाँ नासिका !
हठ योग =
सूर्य स्वर (पिगाला नाडी ) और चन्द्र स्वर ( इडा नाडी ) में समन्वय स्थापित कर
प्राण का सुषुम्ना मे संचारित होना
!
सिद्ध सिद्धांत पद्धति
१/६९ के अनुसार –
हकार कीर्तितः सूर्यः
ठकारश्चन्द्र उच्यते !
सूर्य चन्द्र मसोर्योगात हठयोगो
निगद्यते !! १/६९ !!
अर्थात
– “ह”कार सूर्य
स्वर और ठ कार चन्द्र स्वर है इन
सूर्य और चन्द्र स्वर को प्राणायाम आदि का विशेष अभ्यास कर प्राण की गाती सुषुम्ना
वाहिनी कर लेना ही हठ योग है !”
According
to swami muktibodhananda -
“Ha” means ‘prana’ ( vital force ) and ‘tha’ means
mind (mental energy ) . Thus Hath yoga
means Union of pranic and mental energy”.
According
to her techniques of Hath yoga are –
Shatkarma , aasan , pranaayam , mudra
bandha, concentration . (source - Hath pradipika by Mukti bodhananda )
अभ्यास
हेतु उपयुक्त स्थान
हठ प्रदीपिका में
वर्णित हठ योग अभ्यास के लिए उपयुक्त स्थान -
सुराज्ये धार्मिके देशे सुभिक्षे निरुपद्रवे !
धनु: प्रमाणपर्यन्तं शिलाग्निजलवर्जिते !
एकान्ते मठिकामध्ये स्थातव्यं हठयोगिना !! ह. प्र.१/१२ !!
अर्थात - हठ
योगी को एसे एकांत स्थान में रहना चाहिए
जहाँ का राज्य अनुकूल हो , देश धार्मिक हो , धन धन्य से परिपूर्ण हो तथा जो सभी
प्रकार के उपद्रवो से रहित हो ! ऐसे स्थान पर एक छोटी सी कुटिया में रहना चाहिए ,
जहाँ किसी भी ओर से चार हाथ प्रमाण की दुरी तक पत्थर ,अग्नि अथवा जल न हो !
अल्पद्वारमरंध्रगर्तविवरं नात्युच्चनीचायतं !
सम्यग्गोमयसान्द्र लिप्तममलं नि:शेषजंतूज्झितम !!
बाह्ये मंडपवेदिकूपरुचिरं प्राकारसंवेष्टितं !
प्रोक्तंयोगमठस्य लक्षणमिदं सिद्धै: हठाभ्यासिभिः !! १/१३ !!
अर्थात
– उस कुटी का द्वारा छोटा हो , उसमे कोई छिद्र अथवा बिल ( चूहे , सर्प ) आदि न हो
, वहां की भूमि ऊची – नीची न हो और अधिक विस्तृत भी न हो ! गोबर के मोटे परत से
अच्छी तरह लिपा हुआ हो , स्वच्छ हो , कीड़ो आदि से रहित हो तथा बहार में मंडप ,
वेदी तथा अच्छा कुआं हो और साथ ही वह चारो
ओर से दीवार से घिरा हो ! सिद्ध हठ योगियों द्वारा योग मठ के ये लक्षण बताये गए है !
एवं विधे मठे स्थित्वा सर्वचिन्ताविवर्जित: !
गुरुपदिष्टमार्गेण योगमेव समभ्यसेत !! १/१४ !!